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आईपीएल की आड़ में हाई-टेक सट्टेबाज़ी का भंडाफोड़: गोवा पुलिस की बड़ी कार्रवाई, उल्हासनगर से जुड़े तार।


पणजी/उल्हासनगर: दिनेश मीरचंदानी 

इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) जैसे प्रतिष्ठित क्रिकेट टूर्नामेंट की आड़ में संचालित हो रहे एक हाई-टेक और संगठित सट्टेबाज़ी गिरोह का पर्दाफाश करते हुए गोवा पुलिस ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस सट्टेबाज़ी नेटवर्क की जड़ें महाराष्ट्र के उल्हासनगर शहर से जुड़ी पाई गई हैं, जो न केवल तकनीक का दुरुपयोग कर रहा था बल्कि युवाओं के भविष्य और मानसिक स्थिति को भी गहरे संकट में डाल रहा था।

मुख्य आरोपी फरार, पूरे राज्य में जारी है सर्च ऑपरेशन

पुलिस जांच में खुलासा हुआ है कि इस सट्टेबाज़ी रैकेट का संचालन अवि इसरानी और गिरिष जेसवानी नामक दो आरोपियों द्वारा किया जा रहा था, जो उल्हासनगर के निवासी हैं। दोनों आरोपी फिलहाल फरार हैं और उनके खिलाफ पहले से भी कई खुफिया जानकारियाँ पुलिस को प्राप्त थीं। गोवा में बढ़ती निगरानी से बचने के लिए इन आरोपियों ने वहां से अपना नेटवर्क चलाना शुरू किया और आईपीएल जैसे मेगा-इवेंट को हथियार बनाकर करोड़ों रुपये की सट्टेबाज़ी को अंजाम दे रहे थे।

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और क्रिप्टो के जरिए किया जा रहा था लेनदेन

गिरोह द्वारा मोबाइल ऐप्स, वर्चुअल वॉलेट्स, फर्जी बैंक खातों और क्रिप्टोकरेंसी जैसे डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल कर लेनदेन किया जा रहा था, ताकि कानूनी निगरानी से बचा जा सके। अब तक दो आरोपियों को पुलिस ने हिरासत में लिया है, जिनसे पूछताछ के बाद और भी नाम सामने आने की संभावना है। जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज़ की फॉरेंसिक जांच शुरू कर दी गई है, जिससे महत्वपूर्ण सुराग मिलने की उम्मीद है।

कॉलेज और बेरोजगार युवाओं को बना रहे थे निशाना

इस रैकेट का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह गिरोह कॉलेज विद्यार्थियों और बेरोजगार युवाओं को 'झटपट कमाई' का लालच देकर सट्टेबाज़ी में फंसा रहा था। उल्हासनगर जैसे शहरी क्षेत्रों में पहले से मौजूद मानसिक तनाव और बेरोजगारी की स्थितियों का लाभ उठाकर यह गिरोह युवाओं को अपराध की दलदल में धकेल रहा था, जिससे समाज में गंभीर सामाजिक और मानसिक प्रभाव उत्पन्न हो रहे हैं।

प्रशासनिक और सुरक्षा एजेंसियों से की गई चार महत्वपूर्ण मांगें

मंत्रालय टाइम्स इस गंभीर और सुनियोजित अपराध के विरुद्ध प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों से निम्नलिखित ठोस कदम उठाने की मांग करता है:

1. मुख्य आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी सुनिश्चित कर उनके विरुद्ध महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के अंतर्गत कठोर कार्रवाई की जाए।

2. गिरोह से जुड़े आर्थिक स्रोतों की गहन जांच कर उनकी संपत्तियों को तत्काल ज़ब्त किया जाए।

3. युवाओं को सट्टेबाज़ी और साइबर अपराध से बचाने हेतु विशेष जागरूकता अभियान, परामर्श केंद्रों और साइबर हेल्पलाइन की स्थापना की जाए।

4. गोवा और उल्हासनगर पुलिस के बीच समन्वय हेतु एक विशेष अंतरराज्यीय सेल का गठन किया जाए, ताकि भविष्य में ऐसे नेटवर्कों पर त्वरित और समन्वित कार्रवाई की जा सके।

यह केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक हमला है

यह मामला केवल अवैध धन कमाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की बुनियाद, युवा पीढ़ी की मानसिकता और उनके भविष्य पर एक सुनियोजित हमला है। अब समय आ गया है कि हम न सिर्फ ऐसे अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुँचाएं, बल्कि अपने युवाओं को अपराध की दुनिया से बाहर निकालकर उन्हें सुरक्षित, जिम्मेदार और उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर करें।












उल्हासनगर में अवैध निर्माण पर हाईकोर्ट सख्त, UMC और पुलिस पर उठाए सवाल।


उल्हासनगर: दिनेश मीरचंदानी 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को टिप्पणी की कि राज्य सरकार को अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार सभी व्यक्तियों और अधिकारियों पर "कड़ी कार्रवाई" सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि "कानून के शासन" को बनाए रखा जा सके।

अदालत ने ठाणे के उल्हासनगर के एक निवासी की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उल्हासनगर नगर निगम (यूएमसी) को उसके घर के पास बेवास चौक पर डेवलपर महा गौरी बिल्डर्स एंड डेवलपर्स, मनोज पांजवानी द्वारा संचालित एक फर्म द्वारा किए गए अवैध और अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

अदालत ने "अवैध" निर्माण को ध्वस्त करने की मांग वाली याचिका को स्वीकार करते हुए सरकार से इस बड़े मुद्दे पर कानून बनाने का भी आग्रह किया। जस्टिस अजय एस गडकरी और कमल आर खाता की खंडपीठ ने कहा, "हमें डर है कि अगर ये कदम तुरंत नहीं उठाए गए, तो राज्य में नियोजित विकास का पूरा उद्देश्य केवल एक दूर का सपना बनकर रह जाएगा। इसके अलावा, यह अराजकता की स्थिति होगी।"

खंडपीठ ने कहा, "हम ऐसे नागरिकों को अनुमति नहीं दे सकते जो एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने से कतराते हैं, संविधान के तहत अधिकारों के प्रवर्तन की मांग करने के लिए," और कहा कि नागरिकों को पूरी तरह से अवैध निर्माण को नियमित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

याचिकाकर्ता नीतू माखिजा का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील एएस राव ने कहा कि विषय संपत्ति पर बैरकों में छह कमरे थे, जिनमें से कुछ को ध्वस्त कर दिया गया था, और डेवलपर द्वारा नया निर्माण किया जा रहा था, जिससे उनकी संपत्ति में भारी पानी का रिसाव हो रहा था। उन्होंने तर्क दिया कि डेवलपर ने निर्माण के लिए अनुमति नहीं ली थी और उसने आसन्न संपत्ति पर भी अतिक्रमण किया था और उसके द्वारा दी गई धमकियों के कारण उसे "मानसिक आघात" हुआ था। राव ने कहा कि 2024 में यूएमसी और पुलिस अधिकारियों से कई पत्र और शिकायतें करने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिलने के कारण, याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

अदालत ने टिप्पणी की, "यूएमसी, साथ ही पुलिस अधिकारी, समय पर कार्रवाई नहीं करने और इस तरह अवैध निर्माण को बढ़ावा देने और जारी रखने के लिए जिम्मेदार हैं।"

अदालत ने पाया कि यूएमसी ने कोई कार्रवाई शुरू नहीं की, भले ही उसने सितंबर 2024 में याचिकाकर्ता के आरटीआई आवेदन के जवाब में स्वीकार किया था कि विचाराधीन ढांचा अवैध था। अदालत ने कहा कि विध्वंस के प्रयासों को डेवलपर द्वारा जनवरी 2025 में दायर एक नियमितीकरण आवेदन द्वारा भी "बाधित" किया गया था, जिसके बारे में नागरिक निकाय के संबंधित अधिकारी को अपने सभी विभागों को सूचित करना चाहिए था। एचसी ने कहा, "हम पाते हैं कि इस डिजिटल युग में नगर निगमों के विभिन्न विभागों के बीच संचार की गंभीर कमी है। इसे बर्दाश्त और अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

अधिकारियों द्वारा कार्रवाई करने में अत्यधिक देरी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए, अदालत ने टिप्पणी की, "इससे हमें आम जनता की इस धारणा को स्वीकार करना पड़ता है कि संबंधित अधिकारी स्वयं इन अवैधताओं की रक्षा कर रहे हैं, जिसके कारण केवल उन्हें ही पता हैं।" अदालत ने यूएमसी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि विषय स्थल पर फिर से कोई अनधिकृत ढांचा खड़ा न किया जाए और अधिकारियों को डेवलपर के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए कहा।

अदालत ने कहा कि डेवलपर "कानून के अनुसार आवश्यक अनुमति प्राप्त किए बिना निर्माण करने के लिए समान रूप से जिम्मेदार" था। अदालत ने कहा कि यह तर्क कि उसे केवल निर्माण का ठेका दिया गया था, उसे अपराध करने से नहीं बचा सकता।

राज्य सरकार से उपायों की मांग करते हुए, अदालत ने कहा, "अवैध निर्माण में शामिल सभी संबंधितों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और देश में कानून और व्यवस्था और वैध विकास बनाए रखने के लिए कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।" खंडपीठ ने कहा कि यह "काफी आश्चर्यजनक" है कि यहां तक कि पुलिस अधिकारियों ने भी, जो शहर प्रशासन की आंखें हैं, यूएमसी को निर्माण के बारे में नहीं बताया, जबकि महाराष्ट्र नगर निगम (एमएमसी) अधिनियम के तहत उनका कर्तव्य था।












उल्हासनगर में अवैध प्लास्टिक फैक्ट्रियों के खिलाफ ‘राष्ट्र कल्याण पार्टी’ का बिगुल – शैलेश तिवारी ने चेताया, “जनता की ज़िंदगी से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं”


उल्हासनगर: दिनेश मीरचंदानी 

उल्हासनगर क्षेत्र में लगातार बढ़ते प्रदूषण, अवैध प्लास्टिक फैक्ट्रियों की बाढ़ और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर ‘राष्ट्र कल्याण पार्टी’ ने एक बार फिर आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेश तिवारी ने से बात करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि अब समय आ गया है जब आम जनता के हितों की रक्षा के लिए निर्णायक कदम उठाया जाए।

तिवारी ने आरोप लगाया कि उल्हासनगर महानगरपालिका (UMC) के कुछ अधिकारी, दलाल और स्थानीय राजनीतिक नेताओं की मिलीभगत से क्षेत्र में सरकार द्वारा लगाए गए प्लास्टिक प्रतिबंध के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि UMC की सीमा में ऐसी कई दर्जन अवैध प्लास्टिक निर्माण इकाइयां बिना किसी डर और नियम के दिन-रात चलाई जा रही हैं, जिससे शहर की हवा में ज़हरीला प्रदूषण तेजी से फैल रहा है।

इतना ही नहीं, शहर की नदियाँ और नाले प्लास्टिक कचरे से पट चुके हैं। ड्रेनेज सिस्टम पहले ही बेहद जर्जर स्थिति में है और आगामी मानसून में भारी वर्षा के कारण वह ओवरफ्लो होकर कई गरीब बस्तियों और घरों को जलमग्न कर सकता है।

पार्टी अध्यक्ष ने चेतावनी देते हुए कहा, “हम समय रहते UMC, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (MPCB) और पुलिस प्रशासन को आगाह कर रहे हैं कि इन अवैध फैक्ट्रियों पर तत्काल कार्रवाई करें और प्लास्टिक निर्माण व बिक्री पर रोक लगाई जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ और किसी भी नागरिक की जान या संपत्ति को नुकसान पहुंचा, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन, MPCB और पुलिस की होगी।”

उन्होंने आगे कहा कि इन अवैध गतिविधियों में संलिप्त फैक्ट्री मालिकों के साथ-साथ उन्हें संरक्षण देने वाले व्यापारी और राजनेता भी इस अपराध के भागीदार होंगे।

शैलेश तिवारी ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी अब संकेतों और ज्ञापनों के स्तर से आगे बढ़कर सीधा जन आंदोलन करेगी। उन्होंने साफ कर दिया कि यदि संबंधित विभागों ने कार्रवाई नहीं की, तो ‘राष्ट्र कल्याण पार्टी’ के कार्यकर्ता उल्हासनगर, अंबरनाथ और कांबा गांव में स्थित अवैध प्लास्टिक फैक्ट्रियों के सामने धरना देंगे और ज़मीनी स्तर पर संघर्ष करेंगे।

“हम जनता की जान से हो रहे खिलवाड़ को और बर्दाश्त नहीं करेंगे। यदि इस आंदोलन के दौरान किसी प्रकार की कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है, तो इसकी जिम्मेदारी प्रशासन और पुलिस पर होगी,” तिवारी ने कड़े शब्दों में कहा।

पार्टी की इस घोषणा के बाद अब प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बढ़ गया है, वहीं स्थानीय जनता इस पहल को लेकर एक बार फिर उम्मीद लगाए बैठी है कि कोई तो है जो उनके स्वास्थ्य और भविष्य की आवाज़ बुलंद कर रहा है।












मुख्यमंत्री सहायता निधि कक्ष: जरूरतमंद मरीजों के लिए संजीवनी।


मुंबई: दिनेश मीरचंदानी 


महाराष्ट्र सरकार द्वारा जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए संचालित मुख्यमंत्री सहायता निधि एवं धर्मादाय अस्पताल सहायता कक्ष के माध्यम से मार्च माह में 2,517 मरीजों को 22 करोड़ रुपये से अधिक की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। सबसे अधिक सहायता मस्तिष्क विकारों के इलाज के लिए दी गई, यह जानकारी सहायता कक्ष के प्रमुख श्री रामेश्वर नाइक ने दी।

मस्तिष्क विकारों के उपचार के लिए सर्वाधिक सहायता वितरित

मार्च माह में मस्तिष्क संबंधी विकारों के उपचार हेतु 471 मरीजों को आर्थिक सहायता दी गई। इसके अलावा,

कैंसर उपचार के लिए 421 मरीजों,

हिप रिप्लेसमेंट के लिए 306 मरीजों,

दुर्घटनाओं में शल्य चिकित्सा के लिए 247 मरीजों,

हृदय रोगों के उपचार के लिए 239 मरीजों,

दुर्घटनाओं से संबंधित अन्य मामलों में 184 मरीजों,

नी रिप्लेसमेंट के लिए 150 मरीजों,

बाल रोगों के उपचार के लिए 145 मरीजों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई।

जरूरतमंद मरीजों के लिए मददगार साबित हो रहा है सहायता कक्ष

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस के मार्गदर्शन में संचालित मुख्यमंत्री सहायता निधि कक्ष से प्रदेशभर के विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे जरूरतमंद मरीजों को आर्थिक राहत मिल रही है। आर्थिक संकट से जूझ रहे मरीजों और उनके परिजनों ने इस सहायता को वरदान बताते हुए सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया है।

समाज को आगे आना होगा, अधिकाधिक जरूरतमंदों तक पहुंचे सहायता

मुख्यमंत्री सहायता निधि कक्ष का उद्देश्य अधिकतम जरूरतमंद मरीजों तक सहायता पहुंचाना है। कक्ष प्रमुख श्री रामेश्वर नाईक ने समाज के दानशील लोगों से अपील की है कि वे मुख्यमंत्री सहायता निधि कक्ष को उदारता से दान दें, ताकि अधिक से अधिक मरीजों को राहत पहुंचाई जा सके। साथ ही, संवेदनशील नागरिकों से यह अनुरोध किया गया है कि वे इस योजना की जानकारी जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद करें, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसका लाभ उठा सकें।

मुख्यमंत्री सहायता निधि कक्ष का यह प्रयास राज्य के गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए जीवनदायी सिद्ध हो रहा है।



















इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर सुरेंद्र पाटिल पर गंभीर आरोप, पुलिस ने किया मामला दर्ज।


मुंबई: दिनेश मीरचंदानी 

सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को आकर्षित करने वाले एक इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर और उसके ड्राइवर पर नासिक की 19 वर्षीय युवती से नौकरी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का संगीन आरोप लगा है। इस घटना को लेकर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है। यह मामला 16 फरवरी से 29 मार्च के बीच का बताया जा रहा है। पुलिस द्वारा बुधवार को इस संबंध में आधिकारिक बयान जारी किया गया।

मुख्य आरोपी: सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर सुरेंद्र पाटिल

मुख्य आरोपी की पहचान ठाणे जिले के डोंबिवली के पास ठाकुर्ली निवासी सुरेंद्र पाटिल के रूप में हुई है, जो इंस्टाग्राम पर शॉर्ट वीडियो बनाकर अपनी पहचान बना चुका है। पीड़िता ने मानपाड़ा पुलिस थाने में दर्ज शिकायत में आरोप लगाया कि पाटिल ने उसे नौकरी देने के बहाने अपने कार्यालय बुलाया और वहां बंदूक की नोक पर उसका यौन शोषण किया। इसके अलावा, उसने पीड़िता को धमकी दी कि यदि उसने उसकी बात नहीं मानी, तो उसके माता-पिता को नुकसान पहुंचाया जाएगा।

मार्च 29 को बढ़ी घटनाएं, ऑडियो-वीडियो लीक करने की धमकी

एफआईआर के अनुसार, 29 मार्च को पाटिल ने पीड़िता को कार्यालय बुलाने का प्रयास किया, लेकिन जब उसने विरोध किया तो आरोपी ने उसे सोशल मीडिया पर कथित रूप से आपत्तिजनक ऑडियो और वीडियो वायरल करने की धमकी दी। इस दौरान, पाटिल और उसके ड्राइवर ने पीड़िता से दुर्व्यवहार किया।

गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज

पुलिस ने सुरेंद्र पाटिल और उसके ड्राइवर के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, जिनमें धारा 64 (दुष्कर्म), धारा 74 (महिला की मर्यादा भंग करने के उद्देश्य से हमला), धारा 115(2) (चोट पहुंचाने की मंशा), धारा 351(2) (आपराधिक साजिश) और धारा 3(5) (सामूहिक आपराधिक मंशा) शामिल हैं। इसके अलावा, आर्म्स एक्ट के तहत भी प्रकरण दर्ज किया गया है।

आरोपी ने लगाए आरोपों को झूठा बताने के दावे

इस मामले में सुरेंद्र पाटिल ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे उनके खिलाफ साजिश करार दिया है। उसने दावा किया कि यह मामला केवल उससे धन उगाही करने के लिए दर्ज कराया गया है।

पुलिस जांच के घेरे में अन्य विवादित गतिविधियां

पुलिस सूत्रों के अनुसार, पाटिल पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर वीडियो बनाने, सोशल मीडिया पर भारी मात्रा में नकदी दिखाने और लाइसेंसी हथियार का गलत तरीके से उपयोग करने जैसे अन्य मामलों की भी जांच की जा रही है।

यह मामला सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के दुरुपयोग और ऑनलाइन ठगी के बढ़ते खतरों को उजागर करता है, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

यह रिपोर्ट विस्तृत, पेशेवर और गंभीर भाषा में तैयार की गई है। यदि आप इसमें कोई अतिरिक्त जानकारी या बदलाव चाहते हैं, तो बता सकते हैं।












डॉ. ओमप्रकाश शेटे बने आयुष्मान भारत मिशन महाराष्ट्र समिति के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री फडणवीस ने सौंपी बड़ी जिम्मेदारी।


मुंबई: दिनेश मीरचंदानी 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आज डॉ. ओमप्रकाश शेटे को आयुष्मान भारत मिशन महाराष्ट्र समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त करने की घोषणा की। इस महत्वपूर्ण पद के साथ उन्हें विशेष दर्जा और अतिरिक्त सुविधाएं प्रदान की गई हैं। मुख्यमंत्री ने उन पर गहरा विश्वास जताते हुए यह जिम्मेदारी सौंपी है।

सरकार द्वारा जारी संशोधित शासन निर्णय के अनुसार, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना को एकीकृत रूप से लागू करने की पूरी जिम्मेदारी समिति को दी गई है। इस नियुक्ति के साथ, महाराष्ट्र में स्वास्थ्य सुविधाओं को अधिक प्रभावी और व्यापक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

डॉ. शेटे ने इस अवसर पर कहा कि वे मुख्यमंत्री द्वारा सौंपी गई इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाएंगे और आम नागरिकों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता हमेशा से आमजन और जरूरतमंदों को सुलभ व सस्ती चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना रही है, और वे इस मिशन को सफल बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध रहेंगे।

यह निर्णय महाराष्ट्र की स्वास्थ्य व्यवस्था को और अधिक सशक्त बनाने और आम जनता को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।











29 दिन कोमा में रहने के बाद निकिता ने नवजात बेटी को लगाया गले, मुख्यमंत्री सहायता निधि बनी संजीवनी।


नासिक: दिनेश मीरचंदानी

महाराष्ट्र के नासिक जिले की महसरूल निवासी 30 वर्षीय निकिता पंकज पाटोले को अचानक ब्रेन स्ट्रोक होने के कारण कोमा में जाना पड़ा। इस कठिन समय में परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी, और इलाज के लिए आवश्यक भारी भरकम खर्च को देखते हुए उनके पति पंकज पाटोले ने पैतृक कृषि भूमि बेचने का फैसला कर लिया था। लेकिन, एक सामाजिक कार्यकर्ता की सलाह से उन्होंने मुख्यमंत्री सहायता निधि से मदद की गुहार लगाई। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आदेश और कक्ष प्रमुख रामेश्वर नाइक की तत्परता से महज 48 घंटे में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई। इस मदद के चलते निकिता का इलाज शुरू हुआ और 29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद, उन्होंने होश में आकर अपनी नवजात बच्ची को पहली बार गोद में लिया।

खुशियों के बीच अचानक छाया संकट

निकिता और पंकज पाटोले का पहले से एक छह वर्षीय बेटा है। 7 फरवरी को उनके घर एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ था। पूरे परिवार में खुशी का माहौल था, लेकिन 13 फरवरी की रात निकिता को अचानक उल्टियां और डायरिया की समस्या शुरू हो गई। कुछ ही समय में वह बेहोश हो गईं। स्थानीय अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें नासिक स्थित श्री नारायणी हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां जांच में ब्रेन स्ट्रोक की पुष्टि हुई। डॉक्टरों ने बताया कि मस्तिष्क के बाईं ओर रक्तस्राव और सूजन के कारण वह कोमा में चली गई हैं। इलाज के लिए अनुमानित 8 से 10 लाख रुपये की जरूरत थी।

आर्थिक संकट और जमीन बेचने का फैसला

पाटोले परिवार के पास केवल 3 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा था, जो इलाज के खर्च से बहुत कम था। नकद धनराशि की अनुपलब्धता के चलते, पंकज पाटोले और उनके भाई योगेश जाधव ने पैतृक कृषि भूमि बेचने का निर्णय लिया। इसी दौरान, गांव के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने उन्हें मुख्यमंत्री सहायता निधि और धर्मार्थ अस्पताल सहायता कक्ष के बारे में जानकारी दी।

मुख्यमंत्री के आदेश पर 48 घंटे में मिली मदद

पंकज पाटोले ने तुरंत कक्ष प्रमुख रामेश्वर नाइक से संपर्क किया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आदेश और प्रशासन की तत्परता से महज 48 घंटे के भीतर मुख्यमंत्री सहायता निधि से 1 लाख रुपये की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई। इसके अतिरिक्त, लिला हीरा सेवा भावी संस्था और सिद्धिविनायक सेवा भावी संस्था से भी दवाओं के लिए आर्थिक मदद प्राप्त हुई। समय पर मिली इस सहायता के कारण अस्पताल को आगे के इलाज की पुष्टि मिली और निकिता का उपचार तेजी से शुरू हो गया।

मां की ममता और परिवार की खुशी

लगातार 29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद निकिता आखिरकार होश में आईं। दो दिन पहले ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी गई। जब उन्होंने पहली बार अपनी नवजात बेटी को गोद में लिया, तो पूरे परिवार की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। पंकज पाटोले और उनके परिवार ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, कक्ष प्रमुख रामेश्वर नाईक, डॉक्टरों और सभी सहायक अधिकारियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, "इन्हीं की बदौलत हमें हमारी बेटी की मां, एक पत्नी और एक मां के रूप में निकिता वापस मिली।"