उल्हासनगर: दिनेश मीरचंदानी
उल्हासनगर के शिवनेरी हॉस्पिटल से एक बेहद चौंकाने वाला और गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है, जिसने पूरे चिकित्सा तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 65 वर्षीय अभिमान तायडे नामक बुजुर्ग को जिंदा होते हुए भी डॉक्टर द्वारा मृत घोषित कर दिया गया। यही नहीं, अस्पताल प्रशासन ने तुरंत डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया, जिससे परिजन अंतिम संस्कार की तैयारियों में लग गए थे।
जानकारी के अनुसार, अभिमान तायडे की तबीयत कुछ समय से खराब चल रही थी और मुंबई के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अचानक बेहोश हो जाने पर उनके बेटे ने उन्हें रिक्शा से उल्हासनगर के शिवनेरी हॉस्पिटल पहुंचाया। यहां डॉ. आहुजा ने बाहर ही, रिक्शे में मरीज की जांच कर उन्हें मृत घोषित कर दिया। बिना किसी मेडिकल जांच या उचित पुष्टि के, अस्पताल ने डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया।
हालांकि, जैसे ही परिजन अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने देखा कि अभिमान तायडे की छाती में हलचल हो रही है और उनकी धड़कन चल रही है। घबराए परिजन तुरंत उन्हें उल्हासनगर के एक निजी अस्पताल में लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने तत्परता दिखाते हुए इलाज शुरू किया और थोड़ी ही देर में मरीज को होश आ गया। उनकी जान बच गई।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद परिजनों में जहां राहत है, वहीं गहरा आक्रोश भी है। उन्होंने शिवनेरी हॉस्पिटल और डॉ. आहुजा के खिलाफ कड़ी नाराजगी जताई है।
डॉक्टर ने मानी गलती, दी सफाई:
डॉ. आहुजा ने अपनी चूक स्वीकार करते हुए कहा, "रोगी की नब्ज नहीं मिल रही थी, और आसपास के शोर के कारण दिल की धड़कन भी सुनाई नहीं दी। इसी वजह से गलती से मृत घोषित कर दिया गया, इसके लिए मैं खेद प्रकट करता हूं।"
मरीज ने कहा - "अब मैं ठीक हूं"
होश में आने के बाद अभिमान तायडे ने कहा, "मुझे पीलिया हुआ था, अब मेरी तबीयत ठीक है। मैंने खाना भी खा लिया है।"
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि इतनी गंभीर चिकित्सा लापरवाही के बावजूद क्या डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन पर कोई ठोस कार्रवाई होगी? क्या भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस प्रणाली बनाई जाएगी?
यह मामला न केवल एक व्यक्ति की जान से जुड़ा है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की भूमिका अब जांच के घेरे में है।
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