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ठाणे में हत्या के आरोपी की अदालत में शर्मनाक हरकत: न्यायाधीश पर चप्पल फेंकी, नया केस दर्ज।


(फाइल फोटो)

ठाणे/कल्याण: दिनेश मीरचंदानी 

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक सत्र अदालत में सुनवाई के दौरान हुई एक चौंकाने वाली घटना ने न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शनिवार को हत्या के एक गंभीर मामले की सुनवाई के दौरान, 22 वर्षीय आरोपी किरण संतोष भरम ने अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए सत्र न्यायाधीश आर.जी. वाघमारे पर चप्पल फेंक दी। हालांकि, यह चप्पल न्यायाधीश तक नहीं पहुंची और मेज के सामने लकड़ी के फ्रेम से टकराकर न्यायपीठ लिपिक के पास जा गिरी।

अदालत में बढ़ता असंतोष: आरोपी ने दी अदालत बदलने की मांग

घटना के समय आरोपी ने न्यायाधीश से अनुरोध किया था कि उसके मामले को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित किया जाए। न्यायाधीश ने उसे अपने वकील के माध्यम से उचित आवेदन करने का निर्देश दिया। लेकिन जब आरोपी का वकील सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं हुआ, तो अदालत ने आरोपी को किसी अन्य वकील का नाम सुझाने के लिए कहा और नई सुनवाई की तारीख निर्धारित कर दी।

इस दौरान आरोपी ने अदालत के निर्देशों की अनदेखी करते हुए गुस्से में अपनी चप्पल निकालकर न्यायाधीश की ओर फेंक दी। इस अप्रत्याशित घटना से अदालत में मौजूद सभी लोग स्तब्ध रह गए।

कानून के खिलाफ अपराध पर कानून का वार

इस शर्मनाक हरकत के बाद महात्मा फुले पुलिस थाने में आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 132 (लोक सेवक को कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और धारा 125 (दूसरों के जीवन या सुरक्षा को खतरे में डालने वाला कृत्य) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

न्यायपालिका की गरिमा पर हमला

अदालतें न्याय का मंदिर मानी जाती हैं, और ऐसे मामलों में न्यायपालिका पर हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे तंत्र पर हमला माना जाता है। ठाणे की यह घटना न केवल आरोपी के कानूनी संकट को गहरा सकती है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया में अनुशासन और गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।

पुलिस ने शुरू की कड़ी जांच

पुलिस इस मामले की गहराई से जांच कर रही है और आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की तैयारी में है। वहीं, इस घटना ने कानून के जानकारों और आम जनता के बीच अदालतों की सुरक्षा और गरिमा के मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी है।

न्याय व्यवस्था पर सवाल या आरोपी की हताशा?

विशेषज्ञों का मानना है कि आरोपी द्वारा ऐसी हरकत उसके हताशा भरे मनोविज्ञान को दर्शाती है। हालांकि, यह घटना भारतीय न्याय प्रणाली में अनुशासन बनाए रखने और अदालतों में उचित व्यवहार के महत्व को फिर से स्थापित करने का एक गंभीर संदेश देती है।

यह घटना न्यायिक प्रक्रिया के प्रति सम्मान और विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करती है। ऐसे में न्यायपालिका और प्रशासन के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि अदालतों में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।









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