(फाइल फोटो)
नई दिल्ली: दिनेश मीरचंदानी
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (Preliminary Inquiry) की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई आवश्यक है, जिससे अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचने का मौका न मिले।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, तो संबंधित जांच एजेंसी को प्राथमिक जांच करने की बाध्यता नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की शर्तें भ्रष्टाचार के मामलों की जांच प्रक्रिया में अनावश्यक देरी पैदा कर सकती हैं, जिससे न्याय में बाधा उत्पन्न होती है।
इस फैसले के बाद भ्रष्टाचार के मामलों में त्वरित कार्रवाई संभव हो सकेगी, जिससे दोषियों के खिलाफ जल्द कानूनी कार्यवाही हो सकेगी। यह निर्णय भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में चल रही मुहिम को और मजबूत करेगा और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियों को अधिक अधिकार देगा।
क्या है इसका असर?
भ्रष्टाचार के मामलों में अब प्राथमिक जांच की अनिवार्यता खत्म हो गई है।
भ्रष्टाचार निरोधी एजेंसियां सीधे एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर सकती हैं।
मामलों की जांच में तेजी आएगी और भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई संभव होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सरकारी अधिकारियों और अन्य भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इससे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
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