मुंबई: दिनेश मीरचंदानी
मकान ख़रीदारों के हितों की सुरक्षा की दिशा में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी असर वाला फैसला सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जैसे ही किसी हाउसिंग प्रोजेक्ट के अंतर्गत गृह निर्माण संस्था (हाउसिंग सोसाइटी) की स्थापना होती है, बिल्डर को अनिवार्य रूप से चार महीनों के भीतर उस ज़मीन का स्वामित्व सोसाइटी को सौंपना होगा, जिस पर वह प्रोजेक्ट विकसित किया गया है।
विवादों को रोकने की दिशा में बड़ा कदम
हाईकोर्ट का यह निर्णय ऐसे अनेक मामलों के मद्देनज़र आया है, जिनमें बिल्डर्स वर्षों तक ज़मीन अपने कब्ज़े में रखते हैं और सोसाइटी को हस्तांतरण नहीं करते, जिससे सोसाइटी को प्रॉपर्टी टैक्स, विकास कार्यों, मेंटेनेंस अधिकारों और कानूनी स्वायत्तता के संबंध में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कानून का उल्लंघन माना जाएगा देरी
न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि बिल्डर तय समयसीमा में ज़मीन का हस्तांतरण नहीं करता, तो इसे महाराष्ट्र कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट और रियल एस्टेट (रेरा) कानून का उल्लंघन माना जाएगा। ऐसे मामलों में कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
निवासियों को मिली बड़ी राहत
यह फैसला हज़ारों हाउसिंग सोसाइटीज़ के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है, जो वर्षों से बिल्डरों की टालमटोल नीति के चलते अधिकारहीन बनी हुई थीं। कोर्ट ने राज्य सरकार और सहकारी सोसाइटी रजिस्ट्रार को निर्देश दिए हैं कि वे इस नियम का सख़्ती से पालन सुनिश्चित करें।
विशेषज्ञों की राय में...
रियल एस्टेट विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय बिल्डरों को जवाबदेह बनाने में मदद करेगा और मकान खरीदारों को उनके वैध अधिकार दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही यह फैसला पूरे रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता और नियमबद्धता की दिशा में भी एक अहम कदम है।
निष्कर्ष:
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आम नागरिकों के हितों की रक्षा की दिशा में न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका को भी दर्शाता है। यह उम्मीद की जा रही है कि अब भविष्य में बिल्डर्स द्वारा ज़मीन के हस्तांतरण में टालमटोल की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी और हाउसिंग सोसाइटीज़ को उनका पूरा अधिकार समय पर मिलेगा।
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